सावधान! गर्भवस्था के दौरान ब्लड प्रेशर माँ व अजन्मे बच्चे के लिए बन सकता है खतरा
सेहतराग टीम
गर्भवती महिलाओं में हाई ब्लड प्रेशर एक गंभीर समस्या बन सकता है, इसलिए इस पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत होती है। यह बच्चे की माँ के जीवन के लिए खतरा बन सकता है और साथ ही अजन्मे बच्चे के लिए भी खतरा रहता है।
गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर तीन कारणों से समस्याएं पैदा कर सकता है।
पहला, हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त महिला गर्भवती हो।
दूसरा, पहले से हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त महिला में गर्भवस्था के दौरान विषाकता फैल जाना।
और तीसरा गर्भवस्था की विषाकता पहले ही से उत्पन्न हाई ब्लड प्रेशर का और बिगड़ जाना।
पहली वाली स्थिति:
पहली वाली स्थिति में, जब पहले से ही हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त महिला गर्भवती होती है तो ऐसे में पूरे इलाज को दोबारा शुरू करने की जरूरत होती है, क्योंकि कुछ हाई ब्लड प्रेशररोधी दवाइयां गर्भवती महिला अथवा अजन्में बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए मरीज को मिथाइल-डोपा (एलडोमेट) जैसी दवाओं पर रखा जाता है। आमतौर पर ऐसे मरीज ब्लड प्रेशर उचित तरीके से नियंत्रित करके ही आसानी से प्रसव काल पूरा कर सकते हैं। हालांकि पहले से मौजूद हाई ब्लड प्रेशर में यदि यदि गर्भावस्था की विषाक्तता बीच में उत्पन्न हो जाए तो यह चिंता का विषय बन सकता है।
दूसरे व तीसरी स्थिति:
दूसरे व तीसरे प्रकार के मामलों में हाई ब्लड प्रेशर (जिसमें सिरदर्द व घुटनों में भी सूजन आती है) सीधे-सीधे गर्भवस्था के कारण होता है आमतौर पर यह बीस सप्ताह बाद होता है। यह हाई ब्लड प्रेशर चिंता का बड़ा कारण इसलिए होता है क्योंकि जहां एक ओर यह माता के जीवन के लिए खतरा बन सकता है तो वहीं दूसरी भ्रूण के विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। डॉक्टर हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करते हैं, बार-बार मूत्र परिक्षण करते हैं, यह देखने के लिए कि कहीं उसमें प्रतिकूल बदलाव तो उत्पन्न नहीं हो रहे हैं, क्योंकि इसमें गुर्दे ही ऐसे मुख्य भाग हैं जो सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं और गुर्दो के बाद लिवर व खून। गर्भावस्था की विषाक्तता में ब्लड प्रेशर ब्रेन हेमरेज सहित दूसरी गभीर बिमारियों का कारण बनने वाले लो ब्लड प्रेशर से भी कम हो जाता है। इन बीमारियों में गंभीर पीलिया और धमनियों में रक्त का जमाव जैसी बीमारियां शामिल हैं।
डॉक्टर ब्लड प्रेशर 170/110 से नीचे से रखने की कोशिश करते हैं। लेकिन यदि ब्लड प्रेशर नियंत्रण में नहीं रखा जा सके या पेशाब की जांच से यह पता चले कि गुर्दे खराब हो गए हैं या महिला के जीवन को गंभीर खतरा पैदा हो गया है, ऐसी स्थिति में गर्भपात करा दिया जाता है। इस बात की कोशिश की जाती है कि भ्रूण जब तक कम से कम जीवनक्षम न हो जाए तब तक प्रसव न किया जाए। लेकिन माता के जीवन को खतरा होने के कारण यदि यह संभव नहीं हो पता है तो मां को बचाने के लिए भ्रूण को निकाल देना पड़ता है। गर्भपात के लिए संभवता यह सबसे बड़ा चिकित्सकीय संकेत है। जैसे ही गर्भपात हो जाता है या प्रसव हो जाता है, ब्लड प्रेशर अपने आप सामान्य हो जाता है और माता पिता के लिए खतरा कम हो जाता है।
ब्लड प्रेशर नियंत्रण के अलावा पहला डॉक्टरी इलाज एस्प्रिन की बहुत ही कम खुराक करीब 60 मि.ग्रा. (गोली का 1/6 भाग) रोजाना देना है, जो कि गर्भावस्था की विषाक्तता से रक्षा करती है। हालांकि गर्भवती माता व अजन्में बच्चे के बारे में अभी इसकी सुरक्षा को परिभाषित किया जाना चाहिए।
(यह आलेख डॉ. जी. डी. थापड़ द्वारा लिखी किताब ब्लड प्रेशर और स्वस्थ जीवन से लिया गया है)
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